V.S Awasthi

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गरीबों का बचपन

प्रतियोगिता हेतु रचना 
गरीबों का बचपन
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जो गरीब के बच्चे हैं वो बचपन को क्या जाने।
बचपन भी उनसे दूर ही रहता बचपन ना उनको पहचाने।।
जन्म हुआ उनका सड़कों पर, सड़कों पर ही बड़े हुए।
मां के स्तन का दूध ना मिला पानी पी पी कर खड़े हुए।।
बड़े हुए तो एक रोटी को दर-दर की ठोकरें खाते हैं।
बचपन किस्को कहते हैं वो पहचान ना पाते हैं।। 
आज़ाद परिन्दों की उड़ान का उनको ज्ञान नहीं होता।
गर्मी की तपती धूप और ठंडक का भान नहीं होता।।
पेट की अग्नि मिटाने को अपने अश्कों को पी जाते।
कभी-कभी बिन खाने के ही फुटपाथों पर सो जाते।।
जब पेटाग्नि शान्त ना होती है होटलों में बर्तन धोते हैं।
कभी अमीरों की कोठी पर झाड़ू पोंछा भी करते हैं।।
कभी दरिंदों के चंगुल में फंस भीख मांगते फिरते हैं।
यदि भीख नहीं मिलती तो फिर मार औ गाली सहते हैं।।
बचपन कितना सुन्दर होता ये उनको अब तक पता नहीं।
दिन भर कूड़ा कचरा बिनते ये उनकी कोई खता नहीं।।
कूड़े कचरे को ही बिन कर उनका बचपन कट जाता है।
बचपन किसको कहते हैं गरीब का बच्चा जान ना पाता है।।
फुटपाथ ही है मां का आंचल गगन पिता की छाया है।
कोमल बचपन बनता कठोर हो जाती उनकी काया है।।
हमको गरीब के बच्चों को बचपन लौटाना ही होगा।
कूड़ा बिनने वाले कोमल हाथों में एक पुष्प खिलाना ही होगा।।
जो कचरा बिनते हैं दिन भर उनको स्कूल में ले आएं।
स्कूलों में पढ़ें और खेलें उनका बचपन हम लौटायें।।
ये भी तो सुन्दर पक्षी हैं स्वछन्द गगन में उड़ने दो।
दाना, पानी भी इन्हें मिले बचपन में इन्हें बिचरने दो।।
मत छीनों इनका तुम बचपन ये भी ईश्वर को प्यारे हैं।
जिस मां ने इनको जन्म दिया उसकी आंखों के तारे हैं।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर

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1 Comments

Mohammed urooj khan

22-Apr-2024 11:38 AM

👌🏾👌🏾👌🏾

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